Friday 6 March 2015

महाभारत क्यों हुई थी और इसके पीछे प्रभु की क्या मर्जी थी। जीवन क्या हे और क्यो है?

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इस जीवन में कई प्रश्न ऐसे होते हे जिनका उत्तर हम जीवन भर ढूँढ़ते हें फिर भी मन में कही न कही संशय रह जाता है मेरा यह लेख जीवन के उन संशयो को दूर करने का एक प्रयास है। उनमे से कुछ प्रष्न इस प्रकार है।
1. महाभारत क्यों हुई थी और इसके पीछे प्रभु की क्या मर्जी थी?
2. जीवन क्या हे और क्यो है?
उत्तर: अगर हमारे पैर में कोई कांटा चुभ जाये तो कई बार हम एक दुसरे काटे की मदत से उस काटे को निकालते हे फिर दोनों काटो को फेक देते हे उसी प्रकार जब धरती पर दुष्ट राजाओ का भार बढ़ रहा था तब भगवन ने यादव वंश में कृष्ण अवतार लिया और पूरी महाभारत के बाद यदुवंश का भी अंत करके वापस अपने धाम को चले गए। हमारे मन में भ्रम रहता हे की महाभारत अर्जुन ने युद्ध लड़ा और जीता जैसे हम अपने जीवन में रोज कोई न कोई युद्ध लड़ते हे और जीतते या हारते हे परंतु न ये हार हमारी होती और ना ही जीत। ये सब तो भगवन की लीला मात्र हे शायद वो हमारे माध्यम से अपना कोई कार्य अच्छा या बुरा सिद्ध कर रहे हे। हमारा भूत वर्तमान और भविष्य प्रभु की इच्छा से पूर्व निष्चित हे। इस लिए हमें अपने जीवन का लक्ष्य प्रभु का ध्यान और वंदना को बनाना चाहिए।
जिस प्रकार हम टीवी देखते हे और किसी कार्यक्रम के पत्रो को देख कर कभी खुश होते हे और कभी दुखी पर जैसे उस टीवी के कार्यक्रम में हम कुछ बदल नहीं सकते उसी प्रकार हमारा जीवन हे। जो कुछ हमें दिख रहा हे सब प्रभु की माया हे इसलिए उसमे जादा उलझने और सुख दुःख के चक्कर में पड़ने से कुछ हासिल होने वाला नहीं।
ये पूरी श्रष्टि भगवन का स्थूल शारीर हे और वही शूक्ष्म शरीर लिए हुए हमारे भीतर भी विद्यमान हे।
जैसा की श्रीमद् भगवत कथा के दुसरे स्कंध में शुकदेव जी ने राजा परीक्षित को बताया हे की ये पूरी सृष्टि चाँद तारे पेड़ पोधे पशु पक्षी आकाश पाताल सब के सब भगवन के शरीर का कोई न कोई अंग हे और वही प्रभु सुक्ष्म शरीर लेकर हमारे भीतर विराजमान हे।
शुकदेव जी कहते हे की मनुष्य को प्रातःकाल में नित्य क्रियाएँ निपटा कर प्रभु के इस स्वरुप का ध्यान लगाना चाहिए।
प्रभु कमल के फूल की कर्णिका पे विराजमान हे, उनकी लंबी लंबी चार भुजाये हे जिनमे शँख चक्र गदा और पदम धरण किये हुये हे। प्रभु का श्याम वरण हे सुडोल वक्षस्थल पर श्रीवत्सल चिन्ह् और सुनहरी रेखा है। सुन्दर सोने का मुकुट और कानो में मकराकार कुंडल धारण किये हुए है। लंबे घुंगराले नील केश है। नेत्र विशाल तथा कोमल हे होठो पे मंद मंद मुस्कान हे। कमर में करधनी धारण किये हुए हे। पैरो मे नुपुर धारण किये हे। हाथो में सोने के बाजूबंद और कंगन धारण किये हुए हे और उंगलियो में बहुमूल्य अंगूठियां पहने हे। गले में कौस्तुभ मडि धारण किये हे। गले में कभी न मुरझाने वाली कमल के फूलो की माला धारण किये है। पीताम्बर वस्त्र धारण किये हुए है।
प्रभु के इस स्वरुप का प्रतिदिन ध्यान करना चाहिए।
हमें अपने जीवन में प्रभु की वंदना के लिए जादा से जादा समय निकालना चाहिये।
इसके अलावा आपके मन में जो भी प्रश्न हे आप मुझसे पूछ सकते हे।

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