Wednesday 7 October 2015

कलयुग का प्रभाव और मुक्ति के साधन

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दुख होता हे आज समाज में फैले अन्धविश्वास, पाखंड और ढकोसलेबाजी को देख कर, पर शायद यही कलयुग का प्रभाव हे ऐसा श्रीमद भगवत में भी लिखा हे की कलयुग में राजा लुटेरे हो जायेंगे, ब्राम्हण  लोग लोभ वाश और केवल पैसो के लालच में घर घर जा कर पूजा और अनुष्ठान करेंग और कथा कहेंगे , घरो में साले ही सलाहकार होंगे, लोग कलयुगी भिन्न भिन्न धर्मो  के चक्कर में पड़कर  ही जीवन काट देंगे

समय के साथ साथ हमारा अपने आप और अपनी इच्छाओ पर नियंत्रण कम  होता जा रहा हे एक समय था जब लोग एक दुसरे से अनाज, सब्जियों और फॉलो की अदला  बदली करले जीवन यापन करते थे शायद लोग तब जड़ा संतोषी और सुखी थे फिर जैसे जैसे समाज आगे बड़ा लोगो की इच्छाए भी बढ़ती गई अब वो अपने द्वारा बनाया अन्न और सब्जिया बाजार में बेचने लगे और आज तो हद ही हो गई हे लोग जादा  से जादा  मुनाफा कमाने के लिए फॉलो और सब्जियों को स्टोर करके बेचने लगे हे उन्हें इससे कोई फर्क नहीं पड़ता की ऐसा करने से खरीदने वालो की कितनी परेशानी होगी, इस सब की केवल एक ही वजह हे हमारी बढ़ती हुई इच्छाए और अपने आप पे नियंत्रण में कमी और ये सब कलयुग का प्रभाव हे जो दिन पे दिन इंसानो को कमजोर बनता जा रहा हे

अब सवाल ये उठता हे की भगवन ने इस कलयुग को क्यों आने दिया ये उनके ही पदचिन्हो  को विलुप्त करने में लगा हे उसकी केवल एक वजह हे की जो फल अन्य युगो में घोर तपस्या करने से भी नहीं मिलता हे वो कलयुग भगवान की भक्ति और भजन कीर्तन से मिल जाता हे, कलयुग की खासियत हे की अगर आप किसी का बुरा मन में सोचते हो तो के पाप के भागी  नहीं होगे जब तक बुरा कर नहीं देते जबकि सत्कर्मो का फल कलयुग में केवन मन में इच्छा उत्पन्न होने से ही मिल जाता है

अगर आप कलयुग के प्रभाव से पार पाना चाहते हो तो धैर्य रखना सीखना पड़ेगा और जैसा की श्रीमद भगवत में भगवन श्री कृष्णा ने कहा हे की कलयुग में बोहोत दिनों तक अपनी इच्छाओ पे संयम कर पाना आसान नहीं हे इसी लिए उन्हों ने श्रीमद भगवत कथा के सप्ताह यज्ञ को को ही इस कलयुग में संसार चक्र से पार पाने का एक मात्र तरीका बताया हे, इस लिए आप जब भी श्रीमद भगवत के सप्ताह यज्ञ में जाए तो उन सात दिनों तक श्रीमद में बताय नियमो का पूर्ण रूप से पालन करे तभी भगवत्प्राप्ति होगी १. अल्पाहार २. सत्य  बोलना ३. व्यर्थ की चर्चाओ में हिस्सा ना ले ४. ब्रह्मचर्ये का पालन करे ५. किसिस जीव को नुक्सान न पोहचाये

इसके साथ साथ ये भी जरूरी हे कथा के वक्ता को भगवन न बना दे क्योकि महत्व तो उस गद्दी का हे जिसपर बैठ कर वो कथा कर रहा हे नाकि उस व्यक्ति का हां वो वक्त हमारे लिए आदरनिये तो हो  पर भगवान नहीं मुझे दुःख होता हे जब बोहोत से न समझ लोग आते तो कृष्णा की कथा सुनने हे पर वापस जाने तक कथा वाचक को ही कृष्णा मान लेते हे जबकि उसका काम केवल भगवन की कथाओ को भक्ति भाव के साथ हम तक पोहचना हे.

इसके साथ ये भी जरूरी हे की जो कथा वाचक हे वो केवल धन की लोलुपता वष कथा ना करे और उसका मकसद कथा को जादा से जादा  मनोरंजक बना कर केवल भीड़ जुटाना ना हो बोहोत दुख होता हे जब अधिकांश कथा वाचको को कथा के नाम पर धन और प्रसिद्धि के लिए इस प्रकार के पाखंड करते देखता हूँ पर क्या करे ये ही तो कलयुग का प्रभाव हे




Friday 6 March 2015

महाभारत क्यों हुई थी और इसके पीछे प्रभु की क्या मर्जी थी। जीवन क्या हे और क्यो है?

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इस जीवन में कई प्रश्न ऐसे होते हे जिनका उत्तर हम जीवन भर ढूँढ़ते हें फिर भी मन में कही न कही संशय रह जाता है मेरा यह लेख जीवन के उन संशयो को दूर करने का एक प्रयास है। उनमे से कुछ प्रष्न इस प्रकार है।
1. महाभारत क्यों हुई थी और इसके पीछे प्रभु की क्या मर्जी थी?
2. जीवन क्या हे और क्यो है?
उत्तर: अगर हमारे पैर में कोई कांटा चुभ जाये तो कई बार हम एक दुसरे काटे की मदत से उस काटे को निकालते हे फिर दोनों काटो को फेक देते हे उसी प्रकार जब धरती पर दुष्ट राजाओ का भार बढ़ रहा था तब भगवन ने यादव वंश में कृष्ण अवतार लिया और पूरी महाभारत के बाद यदुवंश का भी अंत करके वापस अपने धाम को चले गए। हमारे मन में भ्रम रहता हे की महाभारत अर्जुन ने युद्ध लड़ा और जीता जैसे हम अपने जीवन में रोज कोई न कोई युद्ध लड़ते हे और जीतते या हारते हे परंतु न ये हार हमारी होती और ना ही जीत। ये सब तो भगवन की लीला मात्र हे शायद वो हमारे माध्यम से अपना कोई कार्य अच्छा या बुरा सिद्ध कर रहे हे। हमारा भूत वर्तमान और भविष्य प्रभु की इच्छा से पूर्व निष्चित हे। इस लिए हमें अपने जीवन का लक्ष्य प्रभु का ध्यान और वंदना को बनाना चाहिए।
जिस प्रकार हम टीवी देखते हे और किसी कार्यक्रम के पत्रो को देख कर कभी खुश होते हे और कभी दुखी पर जैसे उस टीवी के कार्यक्रम में हम कुछ बदल नहीं सकते उसी प्रकार हमारा जीवन हे। जो कुछ हमें दिख रहा हे सब प्रभु की माया हे इसलिए उसमे जादा उलझने और सुख दुःख के चक्कर में पड़ने से कुछ हासिल होने वाला नहीं।
ये पूरी श्रष्टि भगवन का स्थूल शारीर हे और वही शूक्ष्म शरीर लिए हुए हमारे भीतर भी विद्यमान हे।
जैसा की श्रीमद् भगवत कथा के दुसरे स्कंध में शुकदेव जी ने राजा परीक्षित को बताया हे की ये पूरी सृष्टि चाँद तारे पेड़ पोधे पशु पक्षी आकाश पाताल सब के सब भगवन के शरीर का कोई न कोई अंग हे और वही प्रभु सुक्ष्म शरीर लेकर हमारे भीतर विराजमान हे।
शुकदेव जी कहते हे की मनुष्य को प्रातःकाल में नित्य क्रियाएँ निपटा कर प्रभु के इस स्वरुप का ध्यान लगाना चाहिए।
प्रभु कमल के फूल की कर्णिका पे विराजमान हे, उनकी लंबी लंबी चार भुजाये हे जिनमे शँख चक्र गदा और पदम धरण किये हुये हे। प्रभु का श्याम वरण हे सुडोल वक्षस्थल पर श्रीवत्सल चिन्ह् और सुनहरी रेखा है। सुन्दर सोने का मुकुट और कानो में मकराकार कुंडल धारण किये हुए है। लंबे घुंगराले नील केश है। नेत्र विशाल तथा कोमल हे होठो पे मंद मंद मुस्कान हे। कमर में करधनी धारण किये हुए हे। पैरो मे नुपुर धारण किये हे। हाथो में सोने के बाजूबंद और कंगन धारण किये हुए हे और उंगलियो में बहुमूल्य अंगूठियां पहने हे। गले में कौस्तुभ मडि धारण किये हे। गले में कभी न मुरझाने वाली कमल के फूलो की माला धारण किये है। पीताम्बर वस्त्र धारण किये हुए है।
प्रभु के इस स्वरुप का प्रतिदिन ध्यान करना चाहिए।
हमें अपने जीवन में प्रभु की वंदना के लिए जादा से जादा समय निकालना चाहिये।
इसके अलावा आपके मन में जो भी प्रश्न हे आप मुझसे पूछ सकते हे।

Thursday 19 February 2015

कथा सार: भीष्म पितामह की शेष शैया!

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शेष शैया पे विराजमाम भीष्म पितामह ने जब देखा की पांडवो के साथ भगवन श्री कृष्ण भी आखरी समय पर उनसे मिलने आये हे तो पितामह ने भगवन की वंदना की और बोले प्रभु आपको यहाँ आकर मूझ पर बहुत कृपा की।
प्रभु मुझे याद हे की आपने केवल मेरे संकल्प का मान रखने के लिये अपना संकल्प तोड़ते हुए युद्ध में हतियार उठाये थे। जिसके पसीने की एक बूँद गिरने से पूरी त्रिलोकी हिल जाती हे उनके पूरे शारीर को मैने अपने शस्त्रों से लहुलोहान कर दिया था और आप मुझ पर हमला करने के लिए मेरे पिछे दौड़े थे।
प्रभु आप से तो भय भी थर थर काँपता हे फिर भी जब आप माखन की मटकी तोड़ दिया करते थे और यशोदा माता की मार की डर से छुप जाते थे और कई बार तो मार पड़ने पर आपके आसु की नन्ही बूंदे जब धरती पर गिरती थी तो धरती माता भी आपने पर गर्व् करती थी। कितने मनोहर पल थे वे जिनमे आप जिसके भय से भय भी थर थर कापता हे यशोदा माता की मार के डर से यहाँ वहाँ छुप जाते थे।
प्रभु आप मुझ पर कृपा करे।