Sunday 18 August 2013

जीवन के सुख दुःख में आसक्त पुरुषों की गति का वर्णन

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श्रीमद भागवत महापुराण तृतीय स्कन्ध - तीसवाँ अध्याय 




    कपिलदेव जी अपनी माता देवहूति से कहते हैं, जिस प्रकार हवा के द्वारा उड़ाया  बादल उसकी शक्ति को नहीं जानता उसी प्रकार इन्सान भी बलवान काल की प्रेरणा से विभिन्न अवस्थाओं तथा योनियों में घूमता रहता है परन्तु अपने पैदा होने के कारण को नहीं जान पाता। जीव सुख पाने के लिए जिन जिन वस्तुओं को बड़े कष्ट से प्राप्त करता है उसी उसी को भगवान काल नष्ट कर देते हैं।  जिसके लिए उसे बड़ा दुःख होता है।  इसका कारण यही है की यह मंदबुद्धि जीव अपने इस नाशवान शरीर और उसके सम्बन्धियों के घर, खेत और धन आदि को मोहवश अपना मान लेता है।  इस संसार में यह जीव जिस जिस योनियों में जन्म लेता है उसी उसी में आनंद मानने लगता है और उससे विरक्त नहीं हो पाता।  यह भगवान् की माया से ऐसा मोहित हो रहा है की कर्मवश नरक की योनियों में जन्म लेने पर भी वहां के विष्ठा आदि भोगों में ही सुख मानने के कारन उसे भी छोड़ना चाहता।  यह मुर्ख अपने शरीर, स्त्री, पुत्र, घर, पशु, धन और रिश्तेदारों में अत्यंत आसक्त होकर उनके सम्बन्ध में नाना प्रकार के मनोरथ करता हुआ अपने को बड़ा भाग्यशाली समझता है।  इनके पालन पोषण की चिंता से इसके सम्पूर्ण अंग जलते रहते हैं।  कुलटा स्त्रियों द्वारा एकांत में सम्भोग आदि के समय प्रदर्शित किये हुए कपटपूर्ण प्रेम में तथा बालकों की मीठी मीठी बातों में मन और इन्द्रियों के फंस जाने से गृहस्थ पुरुष घर के दुःख प्रधान कपट पूर्ण कर्मों में लिप्त हो जाता है।  यहाँ तहां से भयंकर हिन्साव्रत्ति और भ्रष्टाचार द्वारा धन संचय कर यह ऐसे ल्प्गों का पोषण करता है जिसके पोषण से नर्क में जाता है। स्वयं तो उनके खाने पीने से बचे हुए अन्न को ही खाकर रहता है बार बार प्रयत्न करने पर भी जब इसकी जीविका कम पड़ती है या नहीं चलती तो यह लोभवश दूसरे के धन की इच्छा करने लगता है। जब मंदभाग्य के कारण इसका कोई प्रयत्न नहीं चलता या वह जीव जब धन कमाना बंद कर देता है और धनहीन होकर कुटुंब के भरण पोषण में असमर्थ हो जाता है तब परेशान हो जाता है। 

    इसे अपने पालन पोषण में असमर्थ देखकर वे स्त्री पुत्र आदि इसका पहले के समान आदर नहीं करते जैसे कृपण किसान बूढ़े बैल की उपेक्षा कर देता है। फिर भी इसे वैराग्य नहीं होता जिन्हें उसने स्वयं पाला था वे ही अब उसका पालन करते हैं, वृद्धावस्था के कारण इसका रूप बिगड़ जाता है, शरीर रोगी हो जाता है, आँखे कमजोर हो जाती हैं, भोजन और पुरुषार्थं दोनों ही कम हो जाते हैं।  वह मरणोंमुख होकर घर में पड़ा रहता है और कुत्ते की भांति  स्त्री पुत्र आदि के अपमान पूर्वक दिए हुए टुकड़े खाकर जीवन निर्वाह करता है मृत्यु का समय निकट आने पर वायु के उत्क्रमण से इसकी पुतलियाँ चढ़ जाती हैं, सांस लेने की नलिकाएं कफ से रुक जाती हैं, खांसने और सांस लेने में भी इसे बड़ा कष्ट होता है।  यह अपने शोकातुर बंधु बांधवों से घिरा हुआ पड़ा रहता है और म्रत्यु पाश के वशीभूत हो जाने से उनके बुलाने पर भी नहीं बोल सकता।  

     इस प्रकार जो मूढ़ पुरुष इन्द्रियों को ना जीतकर निरंतर कुटुंब पोषण में ही लगा रहता है। वह रोते हुए स्वजनों के बीच अत्यंत वेदना से अचेत होकर म्रत्यु को प्राप्त करता है।  इस अवसर पर उसे लेने के लिए अति भयंकर और रोषयुक्त नेत्रों वाले जो दो यमदूत आते हैं उन्हें देखकर वह भय के कारण मल मूत्र कर देता है वे यमदूत उसे यातना देह में डाल देते हैं और जिस प्रकार सिपाही किसी अपराधी को ले जाते हैं उसी प्रकार उसके गले में रस्सी बंधकर बलात्कार से यमलोक की लम्बी यात्रा में उसे ले जाते हैं।  उनकी घुड़कियों से उसका ह्रदय फटने और शरीर कांपने लगता है।  मार्ग में उसे कुत्ते नोचते हैं उस समय अपने पापों को याद करके वह व्याकुल हो उठता है।  भूख प्यास उसे बेचैन कर देती है तथा धूप, अग्नि और लू से वह ताप जाता है।  ऐसी अवस्था में जल और विश्राम स्थान से रहित उस तप्त बालुकामय मार्ग में जब उसे एक पग बढाने की भी शक्ति नहीं रहती यमदूत उसकी पीठ पर कोड़े बरसाते हैं तब बड़े कष्ट से उसे चलना ही पास्ता है।  वह जहाँ तहां थक कर गिर जाता है, बेहोश हो जाता है।  होश आने पर फिर उठता है इस प्रकार अतिदुखमय अँधेरे मार्ग से अत्यंत क्रूर यमदूत उसे शीघ्रता से यमपुरी ले जाते हैं।  यमलोक का मार्ग निन्यानबे हजार योजन है इतने लम्बे मार्ग को दो ही तीन मुहूर्त में तय करके वह नरक में तरह तरह की यातनाएं भोगता है।  वहां उसके शरीर को धधकती लकड़ियों आदि के बीच में डालकर जलाया जाता है।  कही स्वयं और दूसरों द्वारा काट काटकर उसे अपना ही मांस खिलाया जाता है।  यमपुरी के कुत्तों अथवा गिद्धों द्वारा जीते जी उसकी आंते खींची जाती हैं। सांप, बिच्छू, और डांस आदि डसने तथा डंक मारने वाले जीवों से शरीर को पीड़ा पहुंचाई जाती है।  शरीर को काटकर टुकड़े टुकड़े किये जाते हैं. उसे हाथियों से चिरवाया जाता है, पर्वत शिखरों से गिराया जाता है अथवा जल या घड़े में डालकर बंद कर दिया जाता है. यह सब यातनाएं तथा ईसिस प्रकार तामिस्त्र और अंधतामिस्त्र  एवं रौरव आदि नरकों की और भी अनेकों यातनाएं स्त्री हो या पुरुष, उस जीव को परस्परोक संसर्ग से होने वाले पाप के कारन भोगनी पड़ती है।  माताजी ! कुछ लोगों का कहना है कि स्वर्ग और नर्क तो इसी लोक में हैं क्योंकि जो नारकीय यातनाएं हैं वे यहाँ भी देखी जाती हैं। 

    इस प्रकार अनेक कष्ट भोगकर अपने कुटुंब का ही पालन करने वाला अथवा केवल अपना ही पेट भरने वाला पुरुष उन कुटुंब और शरीर दोनों को यही छोड़कर मरने के बाद अपने किये हुए पापों का ऐसा फल भोगता है।  मनुष्य अपने कुटुंब का पेट पलने में जो अन्याय करता है उसका कुफल वह नर्क में जाकर भोगता है।  उस समय वह ऐसा व्याकुल होता है मानो उसका सब कुछ लुट गया हो।  जो पुरुष निरी पाप और भ्रष्टाचार की कमाई से अपने परिवार का पालन करने में व्यस्त रहता है वह अन्धतामिस्त्र नर्क में जाता है जो नरकों में चरम सीमा का कष्टप्रद स्थान है।  मनुष्य जन्म मिलने से पूर्व जितनी भी यातनाएं हैं तथा शूकर- कुकरादी योनियों के जितने कष्ट हैं उन सबको क्रम से भोगकर शुद्ध हो जाने पर वह फिर मनुष्य योनि में जन्म लेता है।